श्री कृष्णा के विवाह के बाद राधा जी का क्या हुआ ? | What Happened To Radha after Lord Krishna Married Rukmini?Ji Ki Photo
महाभारत युद्ध समाप्त हो जाने के बाद भगवान श्री कृष्ण अपने सभी दायित्वों से मुक्त होने के बाद द्वारका में रहने लगे थे।
राधा जी एक अंतिम बार श्री कृष्ण से मिलने उनके महल द्वारका गई। जब वह द्वारका पहुंचीं, वहां उन्होंने श्रीकृष्ण से रुक्मणी और सत्यभामा के विवाह के बारे में सुना है।
जब राधा श्री कृष्ण जी से महल में मिलीं तो वह बहुत खुश हुईं। दोनों ने लंबे समय यक एक दूसरे से बातें की। हालांकि, कोई भी द्वारका में राधा जी को नहीं जानता था। राधा जी ने खुद को श्री कृष्ण से महल में एक कर्मचारी के रूप में नियुक्त करने का अनुरोध किया ताकि वह भी उसी महल में रहकर श्रीकृष्ण जी के दर्शन नित्य प्राप्त कर सकें।
अब राधा दिन भर में महल में रहतीं और श्रीकृष्ण जी के दर्शन प्राप्त करतीं। परंतु महल में श्री कृष्ण जी के सामने रहने के बाद भी राधा जी पहले की तरह भगवान कृष्ण के साथ आध्यात्मिक संबंध महसूस नहीं कर सकीं जैसा पहले महसूस करती थी। राधा जी ने श्री कृष्ण के साथ गहरे आध्यात्मिक संबंध स्थापित करने के उद्देश्य से महल से दूर जाने का निर्णय लिया।
राधा को नहीं पता था कि वह कहां जा रही थी और पूरी तरह से अकेली भी थीं। ऐसा कहा जाता है की उनके अंतिम दिनों में वह बहुत कमजोर हो गईं थीं। भगवान श्री कृष्ण भी कई दिनों तक राधा को ढूंढते ढूंढते आखिरकार उनके अंतिम दिनों में उनके सामने पहुंच गए। उन्होंने राधा जी से बात करनी चाहिए परंतु राधा ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया। फिर कृष्ण के बहुत अनुरोध पर, राधा ने कहा कि वह श्री कृष्ण को आखिरी बार बांसुरी बजाते देखना चाहती हैं।
श्री कृष्ण मैं अपनी बांसुरी ली और आंखें बंद करके उस पर बहुत ही मधुर एवं मुक्त कर देने वाली धुन बजाने लगे। राधा जी भी उस धुन में खो गई और उसी मधुर धुन सुनते सुनते धीरे धीरे अपनी आंखें सदा के लिए बंद कर ली।
कुछ समय बाद जब श्री कृष्ण ने अपनी आंखें खोली तो उन्होंने देखा की राधा जी अपने शरीर को त्याग चुकीं हैं। यह देख कर श्री कृष्ण जी को बहुत-बहुत दुख हुआ और उन्होंने दुख और गुस्से के मारे अपनी बांसुरी तोड़ दी और उसे वहीं कहीं झाड़ी में फेंक दिया।
ऐसा कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने उस दिन के बाद से कभी भी किसी के लिए भी बांसुरी नहीं बजाई। बस उस बांसुरी के टूटने के साथ ही श्री कृष्णा और राधा जी की पवित्र प्रेम कथा का अंत हुआ।
जन्माष्टमी 2023: एक आध्यात्मिक उत्सव का अद्वितीय महत्व
परिचय
जन्माष्टमी, भारतीय हिन्दू समुदाय के एक महत्वपूर्ण त्योहार का नाम है जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। यह उत्सव सालाना भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की आष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जिसका अर्थ होता है कि यह हर साल अगस्त या सितंबर के महीने में आयोजित किया जाता है। जन्माष्टमी का मुख्य उद्देश्य भगवान कृष्ण की पूजा, भक्ति और आदर करना होता है।
खास महत्व
जन्माष्टमी का यह उत्सव हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि यह भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के अवसर पर मनाया जाता है, जिन्हें विष्णु के आवतार माना जाता है। श्रीकृष्ण का जन्म भगवान्तर के रूप में होने के कारण, इस उत्सव को बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है।
उत्सव की तैयारियाँ
जन्माष्टमी के उत्सव की तैयारियों में लोग अपने घरों को सजाते हैं और उन्हें फूलों, धातुओं और रंगीन पट्टियों से सजाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को खास रूप से सजाकर रखा जाता है और उसकी पूजा की जाती है। भक्तों के द्वारा विशेष भजन गाए जाते हैं और विभिन्न प्रकार के प्रसाद तैयार किए जाते हैं, जिन्हें बाद में बांटा जाता है।
खास प्रसाद
जन्माष्टमी के दिन मिठाई और प्रसाद का विशेष महत्व होता है। दूध, मक्खन, दही, मिश्रित द्राक्षा, और नट्स के साथ बनाई जाने वाली मिठाइयाँ खास रूप से तैयार की जाती हैं। माखन ही वो खास प्रसाद है जिसे श्रीकृष्ण का पसंदीदा मिठाई माना जाता है, और इसके लिए खास रूप से एक मिश्रित खेल भी आयोजित किया जाता है जिसमें युवाओं को माखन चुराने की कोशिश करनी होती है।
भक्ति और पूजा का माहत्व
जन्माष्टमी के उत्सव में भक्तों का विशेष ध्यान भगवान श्रीकृष्ण की पूजा और भक्ति में होता है। ध्यान, मेधा, और आध्यात्मिकता की वृद्धि के लिए यह एक श्रेष्ठ अवसर होता है। मंत्रों की रूपरेखा के साथ-साथ भक्तों की गुप्त विचारशीलता को ध्यान में रखकर यह उत्सव मनाया जाता है।
आध्यात्मिक संदेश
जन्माष्टमी का यह पर्व हमें यह शिक्षा देता है कि जीवन में सत्य, न्याय, और धर्म का पालन करते हुए हम सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण की जीवन की कहानियाँ हमें उनके उपदेशों का पालन करने की महत्वपूर्णता को सिखाती हैं और हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।
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