मेरा गांव - कविता | मेरा गांव मेरा देश - कविता | Mera Gaon - Kavita
मेरा गांव - कविता बड़े दिनों के बाद मिली है, फुर्सत घर में रहने की। तन मन इतना शांत यहां है, कुछ नहीं ज़रूरत कहने की।। शुद्ध है भोजन, शुद्ध हवा है, प्रकृति भी कितनी न्यारी है। है धरा सुशोभित फसलों से, ये घनघोर घटायें प्यारी हैं । बह रही पवन पुरवइया है, घन भी नभ पर छाये हैं। धरती की प्यास बुझाने को, तैयारी कर पूरी आये हैं।। पेड़ों के पत्ते धुले हुए सब, ली प्रकृति ने अंगड़ाई है। श्रृंगार धरा का करने को, मानो प्रकृति खुद आई है ।। दौड़ धूप ना सुबह शाम की, ना काम की मारा मारी है। ना शोर शराबा शहरों का, ना ही ट्रैफिक की दुश्वारी है।। शांत रहो, संतोष रखो तो, सब सुख यहीं पे मिलता है। गर रहे नियंत्रण इच्छाओं पे, मन कुसुम यहीं पे खिलता है।। - एम एल मौर्य एम एल मौर्य