"बचपन की यादें"
लौट के आई हैं कुछ यादें,
भूली बिसरी बचपन की।
चंचल मन तो अब भी वही है,
पर उमर हो गई पचपन की।
जो मिलता था खा लेते थे,
नहीं बड़ी इच्छाएं थीं।
साधन सीमित थे तब सारे,
नहीं बड़ी सुविधाएं थीं।।
ना तरह तरह के व्यंजन थे,
ना पिज्जा ना बर्गर।
पर फुल मस्ती का आलम था,
गांव - गांव, घर - घर।।
पैसों के दर्शन ना होते थे,
हमको सालों साल।
पर फिक्र नहीं होती थी कोई,
रहते थे खुशहाल।।
लकड़ी की तख्ती होती थी,
ना था कापी का झंझट।
अनाज के बदले हम ले लेते,
चूरन पुड़िया, कंपट।।
छुट्टी के दिन सारे बच्चे,
मिल ढोर चराने जाते।
जौ की बालें, मटर के दाने,
खेतों से बीन के लाते।।
घर में देख न ले कोई उसको,
बड़ी जतन से छुपाते।
जब भी आता फेरी वाला,
दे, बर्फ मलाई खाते।।
आज के जैसे खेल नहीं थे,
थे खेल हमारे न्यारे।
गोटी, कंचे, त्यूरा, सुर्रा,
ये थे खेल हमारे।।
घर घर नाई धोबी आता,
नहीं कहीं था जाना।
जैविक खेती होती थी तब,
न खाद किसी ने लाना।।
गैस के चूल्हे कहीं नहीं थे,
थे मिट्टी वाले चूल्हे।
स्वाद रोटियों का चूल्हों की,
नहीं आजतक भूले।।
होती भोर खरहरा लेकर,
बाग में हम सब जाते।
गिरे हुए सूखे पत्तों को,
खैंची भर कर आते।।
खेतों में जाकर चरी काटते,
घर में काटते कुट्टी।
उस दिन तो आफ़त होती थी,
जिस दिन होती छुट्टी।।
छुट्टी के दिन की खातिर सब,
बचा के रखते काम।
सुबह काम पर जो लगते थे,
तो हो जाती थी शाम।।
कोन गोंड़ते, मेड़ बांधते,
लाते नहर का पानी।
घर आकर के फिर करते थे,
ढोरों की पानी सानी।।
इतना सहज नहीं था अपना,
बचपन का वो दौर।
आज के जैसा वक्त नहीं था,
वो वक्त था कुछ और।।
- एम एल मौर्य
Image Source : Photo by Shuvrasankha Paul: https://www.pexels.com/photo/silhouette-photo-of-children-playing-2616865/
Image Source : : Photo by Archie Binamira: https://www.pexels.com/photo/toddlers-forming-a-circle-754769/
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